Climate Change : जलवायु परिवर्तन न केवल कृषि के लिए, बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा

Climate Change : जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीन हाउस गैसों कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, ओजोन आदि के अनियंत्रित उत्सर्जन से न केवल फसलों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है, बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यदि पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री बढ़ गया तो फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होगा।

कृषि की उत्पादकता बढ़ाने में उपजाऊ मिट्टी, नमी, अनुकूल वातावरण या तापमान, पर्याप्त वर्षा, कीड़ों से सुरक्षा आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें से किसी भी पैरामीटर में परिवर्तन फसलों की उपज को प्रभावित करता है। आने वाले दिनों में देश की जनसंख्या बढ़ेगी. ऐसे में विभिन्न अनाजों की मांग भी बढ़ेगी. जलवायु परिवर्तन इस राह में मुश्किलें पैदा करेगा. इसके जोखिमों से निपटने के लिए कृषि नीति में आवश्यक सुधार करने पर ध्यान देना चाहिए। तभी हम खाद्य असुरक्षा जैसे संकटों से निपट सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के सभी चार आयामों – भोजन की उपलब्धता, भोजन तक पहुंच, भोजन का उपयोग और खाद्य प्रणाली की स्थिरता को प्रभावित करेगा। आंकड़े बताते हैं कि इस सदी के अंत तक धरती का तापमान 3.7-4.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर खाद्य उत्पादन पर पड़ेगा. उदाहरण के लिए, आज गेहूं, जौ, सरसों और आलू की खेती की जा रही है।

वहां तापमान बढ़ने से इन फसलों की खेती नहीं हो सकेगी क्योंकि इन्हें ठंडक की जरूरत होती है. इसी प्रकार तापमान बढ़ने से मक्का, धान या ज्वार आदि फसलों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अधिक तापमान के कारण दाने नहीं बनते या कम बनते हैं। इससे इन फसलों की खेती करना असंभव हो जाएगा।

तापमान बढ़ने से वर्षा में कमी आती है जिससे मिट्टी में नमी की कमी हो जाती है। बढ़ते तापमान से मिट्टी में प्राकृतिक नाइट्रोजन की उपलब्धता भी कम हो रही है। इसे बढ़ाने के लिए हम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बड़े पैमाने पर कर रहे हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है। जलवायु परिवर्तन जोखिम सूचकांक में हम शीर्ष बीस देशों में शामिल हैं।

पिछले चार दशकों में हमारी धरती का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, जिसके कारण बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी बढ़ी हैं। चूँकि हमारे देश में अधिकांश किसानों के पास छोटी ज़मीन है, इसलिए इन आपदाओं के कारण उनकी आय बुरी तरह गिर रही है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत में बढ़ते तापमान का संकट गहराता जा रहा है। अतः ऐसे उपाय आवश्यक हैं जिनसे हमारे किसान जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न कठिनाइयों का सामना करते हुए फसल उत्पादन भी कर सकें और पर्याप्त लाभ भी प्राप्त कर सकें।

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